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अघोरी के बारे में रोचक तथ्य


पहला अघोरी साधु कौन था?
अघोरी भारत के साधुओं और संन्यासियों का एक विशेष कबीला है। इनका अस्तित्व कई हजारों सालों से हैं, सबसे पहले अघोरी साधु कीनाराम थे। वे वाराणसी (बनारस) में गंगा नदी के किनारे रहते थे जहां पवित्र काशी विश्वनाथ मंदिर मौजूद है।
पुनर्जन्म के चक्र से छुटकारा पाकर मोक्ष की तलाश में ये साधु भैरव के रूप में भगवान शिव की पूजा करते हैं।
जिस मौत का हम खौफ लेकर जीते हैं ये उसी मौत का आनंद लेते हुये सम्मान करते हैं।
ये अघोरी साधु दिल में किसी के प्रति नाराजी नहीं रखते उनका मानना है कि जो लोग नफरत करते हैं वे ध्यान नहीं कर सकते।
कुत्तों और गायों के साथ अपना भोजन शेयर करने में इन्हें कोई घृणा नहीं होती है, ये जब भी खाना खाते हैं उनके साथ रहने वाले जानवर भी एक ही प्याले में साथ खाते हैं। उनका मानना है कि यदि वे पशुओं के खाना गंदा करने जैसी तुच्छ चीज़ों पर गौर करेंगे तो वे भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाएंगे।
उनका जीवन इनके बीच ही बीतता है, वे रात और दिन शमशान में रहते हैं। राख़ या भस्म उसके लिए वस्त्र की तरह है जिसे भगवान शिव ने भी धारण किया था। बचपन से ही वे इसका इस्तेमाल करते हैं। 5 तत्वों से बनी यह भस्म उन्हें अनेक बीमारियों और मच्छरों से बचाती है। उनका पूर्ण ध्यान भगवान शिव को प्राप्त करना होता है और इसके लिए वे बाहर कम ही निकलते हैं। उन्हें अपने ध्यान और आराधना में सच्चे सुख की प्राप्ति होती है।
नदी पर तैरती हुई पवित्र लोगों की लाशों से ये सब निकालना इनका पहला काम होता है। अपने गुरु से जादुई मंत्र हासिल करने के बाद ये अघोरी के रूप में जीवन बिताना शुरू करते हैं और मृत अवशेषों को खाते हैं और गंगा के ठंडे बर्फीले पानी में नहाते हैं। आग का धूना उनका मंदिर होता है और भूतों और बुरी आत्माओं का निवास शमशान उनका घर होता है।
रात में लोग भूतों और राक्षसों के डर से जिस शमशान में जाने से डरते हैं ये लोग वहाँ बैठकर ध्यान करते हैं। साफ- दूषित, पवित्र-अपवित्र के अंतर को मिटाकर वे उस जादुई शक्तियों को हर चीज का इलाज करने के लिए हासिल करते हैं।
अघोरी अपनी भयानक भूख के लिए जाने जाते हैं। वे ऐसी चीजें खाते हैं जो कि एक सभ्य व्यक्ति नहीं खा सकता है, जैसे कि कचरा पात्र में डाला खाना, मल, मूत्र और सड़े हुये मानव शव। इस भयानक भूख के पीछे उनके अपने तर्क हैं। मल, मूत्र जैसी उत्सर्ग चीजों को खाने के पीछे उनका मानना है कि इससे अहंकार का नाश होता है और सुंदरता का मानवीय दृष्टिकोण हटता है जो कि अघोरी के रूप में जीवन जीने के लिए आवश्यक है।
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वाराणसी के एक घनी आबादी वाले शहर होने के बावजूद अघोरी वाराणसी में बिना किसी रोकटोक के नर मांस खाते हैं। वे अपनी जरूरत के लिए लोगों को मारते नहीं हैं, वे केवल शमशान से शव लेकर खाते हैं। इन शवों को ये कच्चा ही खाते हैं, कभी-कभी इन्हें खुले में आग जलाकर भी पकाते हैं। मांस की एक निश्चित मात्रा खाने के बाद वे शव के ऊपर बैठकर साधना करते हैं जो कि पूरी रात चलती है।
अघोरी अपने डरावने फैशन के लिए जाने जाते हैं। वे शरीर पर सिर्फ जूट का एक छोटा कपड़ा लपेटे नंगे ही शहर में घूमते हैं। उनके लिए नंगे होने का मतलब है सांसारिक चीजों से लगाव न रखना। अधिकतर बार वे अपनी नग्नता मिटाने के लिए शरीर पर मानव शवों की भस्म (राख़) रगड़ते हैं। यदि आभूषण की बात करें तो वे मानव खोपड़ी को सिर में आभूषण की भांति धारण करते हैं।
दुनियाभर के वैज्ञानिकों को आश्चर्यचकित करते हुये अघोरी दावा करते हैं कि कई लाइलाज बीमारियों का इलाज उनके पास है। ये दवाइयाँ हैं 'ह्यूमन ऑयल' यानि कि मनुष्य की हड्डियों से निकला हुआ तेल जिसे ये जलती चिता से प्राप्त करते हैं। ये बाबा दावा करते हैं कि इस ऑयल में कई बीमारियों का इलाज है आधुनिक मेडिकल में नैतिकता के कारण इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता है। लेकिन वैज्ञानिकों ने उनके इस दावे की कोई जांच नहीं की है।
ऐसा माना जाता है कि इलाज करने की शक्ति उनमें काले जादू से आती है। वे कहते हैं कि वे अपनी शक्तियों का इस्तेमाल कभी बुरे कार्यों के लिए नहीं करते हैं। इसके बजाय वे लोगों के रोग को समझते हैं और उनके पास आए हुये लोगों का इलाज अपने काले जादू से करते हैं। काले जादू का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले कुछ अघोरी साधुओं के अनुसार वे भगवान शिव और काली माँ को जितना प्रसन्न करेंगे उनकी शक्ति उतनी ही बढ़ेगी।
उनका भगवान को प्राप्त करने का हमसे बिलकुल अलग है। एक और जहां हम पवित्रता और शुद्धि में भगवान को तलाशते हैं वहीं उनका मानना है कि 'गंदगी में पवित्रता' को ढूँढना ही ईश्वर प्राप्ति है। उनमें से एक साधु का कहना है कि ये सब दूषित क्रियाएँ करते हुये भगवान पर ध्यान केन्द्रित करते हैं तो ही आप सच्चे अघोरी हैं।
कोई भी अघोरी अपने आपको भांग और गांजे के सेवन से नहीं रोक सकता, उनका मानना है कि इससे उन्हें दैनिक क्रियाएँ करने और धार्मिक मंत्रों पर ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलती है। गांजे के नशे में भी ये सीधे और शांत रहते हैं। कुछ इच्छुक लोग जब पूछते हैं कि क्या वे मजे के लिए नशा करते हैं तो वे मना करते हैं। भांग और गांजे के नशे से हुई माया और भ्रम को वे धार्मिक आनंद की प्राप्ति और आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ाने के लिए करते हैं।

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